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 Law of attraction  आकर्षण का नियम  part  1st
संसार मे उपस्थित सभी  जीव जंतु पेड़ पौधे कीट  मनुष्य  किसी ना किसी प्रकार से  आपस मे आकर्षित होते हैं  प्रकृति  में प्रत्येक संरचना  वायु जल बादल ध्वनि  आदि भी  आकर्षण से जुड़ी हैं जिसके प्रभाव से वायु का वेग जल का बहना बादलो का एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलते रहना जारी है  पदार्थ की विभिन्न अवस्थो का ठोस  द्रव गैस का परस्पर परिवर्तन  भी ऊर्जा के आकर्षण नियम से ऊर्जा के संयोजन व विनमय के कारण ही होता है  

मनुष्य दिन रात विचारो में लगा रहता है इन विचारों का समहू किसी ठोस विचार को मजबूत करता है 
विचारो के दृढ़ता से कर्म का निर्माण होता है कर्म की अभिव्यक्ति कर्मफल में बदल जाती है

विचार जितने मजबूत होते है उनमें शक्ति व ऊर्जा का प्रभा भी उतना होता है उसे शक्ति के साथ व्यक्ति दैनिक जीवन मे कार्य करता रहता है ऊर्जा के इस साकरातमात रूप के अनुसार लक्ष की प्राप्ति होती है 



यदि किसी कार्य के प्रति विचारो की तीब्रता अधिकतम होती है तो उस कार्य को सफल होने की समभअबना अधइक़तम ती है जैसे स्टूडेंट अपने परिक्षा में सफलता के हेतु संकल्पसील होता है उसकी सोच ही उसे परीक्षा में सफल करती है अधिक धन कमाने के लिए व्यापारी निरंतर व्यापार की उन्नति के बारे में सोचता रहता है तभी उसे व्यापार में सफलता मिलते है 

कहते है कि ईच्छाशक्ति और पूर्ण समर्पण भाव से प्रार्थना करने पर ईश्वर भी प्राप्त हो जाते है 

विचार शक्ति के तीव्र प्रवाह कार्य की पूर्णता को  ही आकर्षण का नियम (  Law of attraction ) कहा गया है 

क्या आकर्षण का नियम सत्य है ?

क्या केवल किसी इच्छा की पूर्ति के लिए लगातार सोचते रहने से बह इच्छा पूरी हो जाती है ?
 क्या बिना कर्म किये सोचने से कार्य हो जाते हैं ?
क्या गीता के कर्म सिद्धांत को चुनोती है  ? 

आकर्षण सिद्धांत के 4 कारक है 

1 प्रार्थना ( pray ) .. 

जब व्यक्ति अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने लक्ष्य को सामने रखकर लक्ष्य प्राप्त होने पर होने बाले आनंद सुख एवम खुशी को महसूस करे ।और उस आनंद को अपने  मन मस्तिष्क ने महसूस करने लगे । 
और लक्ष्य प्राप्ति हेतु परमात्मा से पूर्ण मनोयोग से प्रार्थना करता है तो प्रार्थना की शक्ति  परमात्मा की शक्ति से जाकर मिल जाती है और कार्य के सफलता की संभावना अधिकतम हो जाती है।

2 विश्वास (belief )

दुनिया मे विश्वास को सबसे बड़ा कारण माना गया है  परमात्मा की शक्ति के प्रति अटूट विश्वास लक्ष्य प्राप्ति की निश्चितता बढ़ा देता है  अपने लक्ष्य  को ईश्वर को पूर्ण समर्पित कर देना चाहिए ।
3 प्रेम (love)

लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य के प्रति प्रेम होना अतिआवश्यक है यदि किये जा रहे कर्म शुद्धविचारो सकारात्मक सोच से पोषित है तब कार्य के प्रति प्रेम होना निश्चित है  जिस तरह प्रेम में व्यक्ति पूर्ण समर्पित होकर हमेशा अच्छा ही सोचता है और आनंदित रहता है ऐसे ही किसी भी लक्ष्य के लिए प्रेम और पूर्ण समर्पण से किया गया कार्य पूर्ण होने की संभावना अधिकतम हो जाती है 

4  क्रिया ( action ) 

  जब लक्ष्य सामने होता है और व्यक्ति के मन मे लक्ष्य  के प्राप्ति के प्रति पूर्ण दृढ़ विश्वास हो परमात्मा के प्रति प्राथना करे । और परमात्मा की शक्ति पर विश्वास कर ।
अपने लक्ष्य को पूरा करने हेतु कार्य के बारे में समस्त जानकारी  एकत्रित करे । और पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य को पूरा करने लग जाये ।

है कौन विध्न ऐसा जग में 
टिक सके वीर नर के पथ में 
जो खम ठेल ठोकता जब नर 
पर्वत के जाते पांव उखड़ 
मानव जव जोर लगाता है
पत्थर पानी बन जाता है

तो निश्चित ही कार्य पूर्ण होता है क्योंकि जहा  प्रार्थना प्रेम और क्रिया साथ हो ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है 


शेष   part 2 nd  में   read more 
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